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Uttarakhand का वो रहस्यमयी स्थान, जहां ‘कालकूट’ ज़हर पीकर महादेव Neelkanth बने

ऋषिकेश से नीलकंठ महादेव जाने के दो रास्ते हैं एक पुराना पैदल रास्ता है, जो स्वर्गआश्रम से होते हुए जाता है। 7 किलोमीटर का ये रास्ता जंगल से trekking करते हुए मंदिर तक जाता है। जहां लंगूरों को संतो द्वारा भोजन देने के दृश्य दिख जाना आम बात है। दूसरा रास्ता वाया रोड है, ये मंदिर के बेहद नज़दीक तक आपको ले जाता है। लेकिन रोड नेटवर्क से ये दूरी करीब 30 किलोमीटर है। पहाड़ियां घुमावदार हैं, इसलिए वाया रोड भी नीलकंठ महादेव पहुंचने में करीब एक घंटे का समय लग जाता है। मंदिर से काफी पहले ही श्रद्धालुओं को पार्किंग करनी पड़ती है |
Uttarakhand का वो रहस्यमयी स्थान, जहां ‘कालकूट’ ज़हर पीकर महादेव Neelkanth बने

जो अमृत पीते हैं उन्हें देव कहते हैं, जो विष पीते हैं उन्हें देवों के देवमहादेवकहते हैं | आज उन्हीं विष पीने वाले महादेव की वो कहानी बताने जा रहे हैं, उस दिव्य स्थान पर ले जा रहे हैं। जिसे लोग नीलकंठ महादेव के नाम से जानते हैं। वही स्थान जहां पर खुद महादेव ने विष को पीकर समूचे ब्रह्मांड की रक्षा की। वही नीलकंठ महादेव जिन्होंने हलाहल विष को पीकर देव और दानवों को बचाया।


दिल्ली से लगभग 250 किलोमीटर दूर है वो स्थान जहां समुद्र मंथन का सबसे बड़ा रहस्य जुड़ा हुआ है। इसी रहस्य को सुलझान के लिए Being Ghumakkad की टीम निकली है। करीब 4 घंटे के अंदर हम देवभूमि उत्तराखंड के ऋषिकेश पहुंच गए। जी हां, नीलकंठ महादेव यहीं विराजते हैं। ये मंदिर मणिकूट, ब्रह्मकूट और विष्णुकूट की घाटियों में स्थित हैं। ऋषिकेश से नीलकंठ महादेव जाने के दो रास्ते हैं एक पुराना पैदल रास्ता है, जो स्वर्गआश्रम से होते हुए जाता है। 7 किलोमीटर का ये रास्ता जंगल से trekking करते हुए मंदिर तक जाता है। जहां लंगूरों को संतो द्वारा भोजन देने के दृश्य दिख जाना आम बात है। दूसरा रास्ता वाया रोड है, ये मंदिर के बेहद नज़दीक तक आपको ले जाता है। लेकिन रोड नेटवर्क से ये दूरी करीब 30 किलोमीटर है। पहाड़ियां घुमावदार हैं, इसलिए वाया रोड भी नीलकंठ महादेव पहुंचने में करीब एक घंटे का समय लग जाता है। मंदिर से काफी पहले ही श्रद्धालुओं को पार्किंग करनी पड़ती है | 


पार्किंग के बाद नीलकंठ महादेव मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने की दूरी करीब 500 मीटर है। मंदिर के बाहर प्रसाद और पूजा सामग्री की अनगिनत दुकानें हैं। शिवरात्रि और सावन के महीने में यहां पैर रखने की जगह नहीं होती। इन दो अवसरों पर यहां श्रद्धालुओं का अपार जन सैलाब ड़ता है। यहां कांवड़िये जल चढाने पहुंचते हैं।


नीलकंठ महादेव मंदिर की नक़्क़ाशी भी कमाल की है। मंदिर का शिखर द्रविड़ शैली में बना प्रतीत होता है। यहां समुद्र मंथन के दृश्य को चित्रित किया गया है। गर्भ गृह के प्रवेश-द्वार पर एक मूर्ति है, जिसमें महादेव को विष पीते हुए दिखलाया गया है। मंदिर के बाहर लोग धागे बांधकर भोलेनाथ से अपने मन की मुराद पूरी करने की मन्नत मांगते हैं।


हलाहल, कालकूट या बच्छनाग एक ही विष माना जाता है। मान्यता है विष पान के बाद महादेव एक शीतल स्थान की तलाश में थे। वो शीतलता भोलेनाथ को देवभूमि की इसी पहाड़ी पर आकर मिली। कहा जाता है यहीं पर एक पेड़ के नीचे शिवजी ने कई वर्षों तक साधना की। जितना समय महादेव ने साधना में बिताया, उतना ही वक्त मां पार्वती ने भी उनके आगे बैठकर ध्यान लगाया। महादेव जब साधना पूरी करने के बाद वापस कैलाश लौटे तो ये स्थान नीलकंठ महादेव के नाम से विख्यात हो गया। मंदिर के गर्भगृह में मौज़ूद शिवलिंग स्वयंभू है, इसे किसी इंसान ने नहीं बनाया। श्रद्धालुओं को मंदिर के गर्भगृह में किसी भी प्रकार की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की मनाही है।


अगर आप शिव के इस अद्भुत स्थान के दर्शन करना चाहते हैं, तो ऋषिकेश और देहरादून होते हुए यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। ऋषिकेष तक पूरे देश से ट्रेन और बस नेटवर्क से पहुंचा जा सकता है। देहरादून एयरपोर्ट तक आप प्लेन से भी सकते हैं। एयरपोर्ट से ऋषिकेश की दूरी करीब 18 किलोमीटर है। ऋषिकेश तक आप ट्रेन और बस से पहुंच सकते हैं। वहीं, हवाई जहाज से देहरादून स्थित एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं। एयरपोर्ट से ऋषिकेश की दूरी 18 किमी है। ऋषिकेश से रामझूला, फिर स्वर्गआश्रम और वहां से नीलकंठ महादेव टैक्सी या ऑटो लेकर भी पहुंचा जा सकता है।

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