क्या सिख धर्म के अंतिम संस्कार हिंदू परंपराओं से अलग हैं? जानिए विस्तार से
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन 26 दिसंबर को हुआ और उनका अंतिम संस्कार सिख धर्म के परंपराओं के अनुसार दिल्ली के निगमबोध घाट पर किया गया। सिख धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अत्यंत सरल और गहन आध्यात्मिकता से भरपूर होती है। इसमें मृतक के पार्थिव शरीर को शुद्ध करने, पांच ककार से सुशोभित करने और "वाहेगुरु" का जाप करने पर विशेष जोर दिया जाता है।

सिख धर्म में जीवन और मृत्यु को एक अनिवार्य प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, जहां आत्मा को ईश्वर का अंश माना जाता है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो यह आत्मा के परमात्मा में विलीन होने की प्रक्रिया मानी जाती है। ऐसे में सिख धर्म के अंतिम संस्कार की प्रक्रियाएं विशिष्ट और गहरी आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़ी होती हैं। आइए जानते हैं, सिख धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया और इसे हिंदू धर्म से कैसे अलग माना जा सकता है।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार सिख धर्म की परंपराओं के अनुसार किया जाएगा। उनका पार्थिव शरीर दिल्ली के निगमबोध घाट पर अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया। उन्हें राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी जाएगी। सिख धर्म के रीति-रिवाज के अनुसार, उनकी अंत्येष्टि के दौरान गुरबानी का पाठ और अरदास का आयोजन किया गया। यह परंपरा सिख धर्म की गहरी आध्यात्मिकता और समाज में समानता की भावना को दर्शाती है।
सिख धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया
1. पार्थिव शरीर का प्रबंधन मृत व्यक्ति के शरीर को परिवार के सदस्य मिलकर नहलाते हैं और साफ कपड़े पहनाते हैं। इसके बाद पार्थिव शरीर को पांच आवश्यक वस्त्रों (पांच ककार) से सुशोभित किया जाता है।
केश: बाल नहीं काटे जाते।
कंघा: बालों को साफ और सुसज्जित रखने के लिए कंघा।
कड़ा: इस्पात का कंगन, जो गुरु के आदेश का प्रतीक है।
कच्छा: विशेष प्रकार का वस्त्र।
कृपाण: आत्मरक्षा और धर्म का प्रतीक।
2. वाहेगुरु का जाप और कीर्तन: अर्थी के साथ परिवार और करीबी लोग "वाहेगुरु" का जाप करते हैं। शवयात्रा के दौरान गुरबानी (गुरु ग्रंथ साहिब के भजन) का पाठ होता है। यह आत्मा की शांति के लिए किया जाता है।
3. चिता को मुखाग्नि देना: शमशान घाट पर मृतक के करीबी व्यक्ति या बेटा चिता को मुखाग्नि देता है। यह प्रक्रिया जीवन और मृत्यु के चक्र को स्वीकार करने का प्रतीक है।
4. अरदास और भोग: शव के जलने के बाद, परिवार के सदस्य और श्रद्धालु अरदास (प्रार्थना) करते हैं। इसके बाद, अगले 10 दिनों तक गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ आयोजित किया जाता है। अंतिम दिन भोग की रस्म होती है, जिसमें सभी को कड़ा प्रसाद और लंगर दिया जाता है।
सिख और हिंदू धर्म के अंतिम संस्कार में अंतर
1. महिलाओं की भूमिका: हिंदू धर्म में परंपरागत रूप से महिलाओं को श्मशान घाट जाने की अनुमति नहीं होती है, लेकिन सिख धर्म में महिलाएं अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में बराबर भाग ले सकती हैं।
2. श्राद्ध और पिंडदान का अभाव: सिख धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध या पिंडदान जैसी कोई परंपरा नहीं होती। सिख मान्यता के अनुसार, आत्मा को ईश्वर में विलीन होने के लिए किसी विशेष अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती।
3. गुरबानी का पाठ: हिंदू धर्म में मंत्र और वेदपाठ का अधिक महत्व होता है, जबकि सिख धर्म में गुरु ग्रंथ साहिब के पाठ और कीर्तन पर जोर दिया जाता है।
सिख धर्म में अंतिम संस्कार केवल मृतक को विदा करने की प्रक्रिया नहीं है, यह परिवार और समुदाय को भी सिखाता है कि जीवन और मृत्यु को कैसे स्वीकार करना चाहिए। "वाहेगुरु" के जाप से परिजनों को मानसिक शांति मिलती है। यह प्रक्रिया समाज में सामूहिकता और समानता की भावना को भी प्रोत्साहित करती है। सिख धर्म की अंतिम संस्कार की परंपराएं केवल एक व्यक्ति को विदा करने तक सीमित नहीं हैं; वे यह भी सिखाती हैं कि जीवन को कैसे समझा जाए और ईश्वर के प्रति समर्पण कैसे किया जाए। यह प्रक्रिया जीवन के अंत को एक नए अध्याय की शुरुआत के रूप में देखने का दृष्टिकोण प्रदान करती है।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के माध्यम से सिख धर्म की परंपराएं और रीति-रिवाज एक बार फिर समाज के सामने आए। यह दिखाता है कि भारत की विविधता में एकता कितनी गहरी है। सिख धर्म के रीति-रिवाज जीवन के प्रति एक सकारात्मक और गहन दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, जो हर व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक हो सकते हैं।